जाति एक रोग है / Caste is a disease.
2/21/20251 min read


आज 600 वर्ष से ज्यादा समय हो गया गुरु रविदास जी को हमारे बीच में आए हुए गुरु रविदास जी की जब बात करते हैं उन्हें बहुत से लोग अपने अपनी तरह से देखने लगते हैं इसलिए कुछ लोग गुरु रविदास जी को एक संत के रूप में देखते हैं कुछ लोगों ने उनकी शिक्षाओं के कुछ अंश को देखा उनकी शिक्षाओं के प्रभाव को देखा उनकी शिक्षाओं में गुरु रविदास जी के व्यक्तित्व को देखा तब उन्हें एक युग प्रवर्तक के रूप में समझा उदाहरण के रूप में स्वीकार किया जब रविदास जी की राजनीतिक बातों को देखा राजा के सामने कहे हुए निर्विक शब्दों को देखा और किस प्रकार से एक विषम प्रस्तुति में शासन के विरुद्ध बोलने की हिम्मत रविदास जी ने की उसे बात को देखा तो कुछ राजनीतिक लोग रविदास जी को एक राजनीतिक प्रेरक के रूप में विश्वंकर करते हैं मैं यूं कहूं की सामाजिक क्षेत्र में गुरु रविदास जी की अपनी एक भूमिका है धार्मिक क्षेत्र में उनकी अपनी भूमिका है राजनीतिक क्षेत्र में भी उनकी अपनी भूमिका है और स्वावलंबन की बात करूं आर्थिक स्वालंबन की बात करूं तो वहां भी वह हमारे लिए आदर्श नजर आते हैं तो उनके व्यक्तित्व पर चर्चा करना थोड़े से समय बहुत मुश्किल होता है लेकिन आज इस ब्लॉग के माध्यम से मैं उनकी एक बात पर चर्चा कर रहा हूं की सामाजिक व्यवस्था को रविदास जी किस रूप में देख रहे हैं उनका संपूर्ण चिंतन उनका सारा जो दर्शन है वह मानव कल्याण में है और जब हम मानव कल्याण की बात करते हैं तो हमारे मैन में सबसे पहले जो इंसान इंसान के बीच में जो भेद है वह एक बढ़ा नजर आता है जब हम भारत के संदर्भ में बात करते हैं और हिंदू धर्म के संदर्भ में बात करते हैं इसका आधार तो जाती है और जाती के कारण भेद होता है और भेद के कारण लोगों के साथ भेदभाव होता है छुआछूत होती है इतना ही नहीं जाती एक हिंसक वातावरण पैदा करती है जाती के कारण कुछ लोगों को हिंसा करने की शक्ति मिल जाती है और जाती के कारण कुछ लोगों को प्रताड़ना मिलती है जाती के कारण किसी का मनोबल ऊंचा है तो किसी का नीचा है और ये भाव व्यक्ति में भेद पैदा करता है गुरु रविदास जी ने अपने जीवन कल में इस भेद को खत्म करने के लिए ना केवल सलाह दी बल्कि इस पर कम किया मैं उनके द्वारा कहे हुए कुछ शब्द आपके बीच में रख रहा हूं गुरु रविदास जी ने कहा अभी छोटी सी बात को हम गंभीरता से जचने की कोशिश करते हैं विश्लेषण करते हैं हमारी जातीय संरचना कैसी है गुरु रविदास जी कहते हैं हमारी जातीय संरचना ऐसी है जैसे केले के पत्ते पर पत्ता लिटा है अकेले के पत्ते पर ही पत्ता दिखता है और हमें प्रतीत होता है की केले का एक ताना है केला एक पेड़ है वास्तव में पत्ते पर पत्र लिखता है ठीक ऐसे ही हमें लगता है की हमारे समाज है लेकिन वो समाज क्या है एक जाती पर दूसरी जाती नीति है रविदास मानुष जुड़ने सके और इसी के कारण इंसानियत जुड़ नहीं का रही है मनुष्य जुड़ नहीं का रहे हैं जैसे जाट गुजरात क्योंकि जाती एक गुजरात अकेले के पत्ते पर पत्ता लिपटा है वह कभी पेड़ नहीं बन सकता उतना नहीं बन सकता बहुत कमजोर होता है ठीक ऐसे ही ये जातीय संरचना एक दीवार हो गई बढ़ा होगी एक जाती के व्यक्ति दूसरी जाती के लोगों को स्वीकार ही नहीं करते और ये स्वीकार्यता की जो बात जो है इतनी गहरे में चली गई प्रत्येक व्यक्ति को अपनी जाती ही सर्वश्रेष्ठ नजर आती है और इस जाती अहंकार में हम किसी को नीचा समझने लगते हैं और अपने आप को ऊंचा समझने लगते हैं और इसका प्रभाव बड़े लंबे समय तक हम देख रहे हैं जिन लोगों ने अपने आप को श्रेष्ठ कहा किसी आज्ञा शक्ति के मुंह से पैदा होना कहा उन्होंने कहा की पैदा होने का कर्म ही हमारा श्रेष्ठ है इसलिए हम श्रेष्ठ है जो लोग पैरों से पैदा हैं अब यह भाव स्थाई भाव बन गया और इंसानियत इस भाव से कभी जुड़ नहीं सकती और इसीलिए गुरु रविदास ने जाती को kujaat कहा है और उसके साथ कहा जात-पात के फिर में ulajhre सब लोग जात-पात की फिल्में सब लोग रविदास मनुष्य को खाते है जात-पात का रोग अब इसको देखिए सभी लोग जाती के फेर में ही उलझे हैं हमारा कोई कितना भी विद्वान व्यक्ति है और ज्ञान के साथ अगर जाती का पक्ष होता है तब वह अपनी ही जाती के पक्ष में खड़ा होता है और यह बीमारी केवल यहां अपने आप को बड़ा करने वाले लोगों के मैन में नहीं है जिन लोगों को प्रताड़ित किया गया जिन लोगों को जाती के नाम पर छोटा कहा गया नीचे कहा गया शोषण किया जब हम जाती का महिमामंडन करते हैं इसका मतलब हम उसे जाती व्यवस्था को ना केवल स्वीकार करते हैं बल्कि उसे जाती व्यवस्था को मजबूत करने में अपनी हम भूमिका निभाते हैं अब हम guravidas जी की बात करें जाट पात के फिर में उद रहे सब लोग सारे लोग इस जाती पार्टी के फेरे में उलझे हुए हैं और रविदास मनुष्य को खाते हैं जात-पात का रोग जाती एक रोग है और यह रोग इतना भयंकर है की इसने सारी मान्यता को खा लिया है यह मानवता को खाने वाला रोग है और इसके कारण सारी मानवता पीड़ित हो गई सारी मानवता आज कर रही है जाती है दांत से कितने लोगों के जीवन बर्बाद हो गए जातीय अहंकार ने इस देश को कभी देश नहीं बनने दिया जातीय अहंकार ने इस देश के बहुत बड़े वर्ग को कभी मनुष्य होने का भाव ही नहीं दिया तो जाती एक रोग है और अधिकांश रोग रोग अधिकांश लोग इस रोग में से पीड़ित है अब यह दर्शन है गुरु रविदास जी का उनका कहना बिल्कुल स्पष्ट है जाती कुछ आता है और मानवता की विरोधी है जातीय रोग है और इस रोग में जो फसा है वह रोगी है और जब तक इस रोग को दूर नहीं करेंगे हम जाती से बाहर नहीं निकल सकेंगे और इंसानियत हमारे अंदर पैदा नहीं हो सकेगी और हम कभी भी मानवीय दृष्टिकोण से बात नहीं कर सकेंगे है अब मैं इसी दर्शन पर थोड़ा सा और आगे बढ़ता हमने बहुत सारे महापुरुषों को देखा है बाबा साहब को सुना है बाबा साहब का विचार भी हमें आंदोलन करने में बड़ा सहायक हुआ है बुद्ध से लेकर के और मैं गुरु रविदास जी तक आते-आते बाबा साहब के माध्यम से हम यहां तक बात करें प्रत्येक महापुरुष ने जाती को गलत कहा जाती को खत्म करने के लिए कहा और जाती से बाहर आने के लिए कहा आज इतने लंबे संघर्ष के बाद भी प्रत्येक व्यक्ति अपने अपने महापुरुषों को जाती के दायरे में ही देखने लगा है कल जो जयंतिया बनेगी यह सब प्रतिशत एक जाती के लोग मनाएंगे और वह इसलिए नहीं मनाएंगे की गुरु रविदास महापुरुष है वो इसलिए जयंती नहीं मनाएंगे की गुरु रविदास संत शिरोमणि है सारे संतों में वह शिरोमणि है यह उनके लिए मापदंड नहीं है यह गुरु रविदास एक सामाजिक युग प्रवर्तक हैं गुरु रविदास कल्याण का मार्ग दिखाने वाले हैं इन बातों की अहमियत को जान करके जानती नहीं बनेगी बल्कि जयंती इस बात पे बनेगी की कुछ लोग जो जातिगत मानसिकता के कारण ही महापुरुषों को स्वीकार करते हैं और वो इस बात पर गर्व करते हैं की गुरु रविदास हमारी जाती के द इसलिए हमने मानते हैं बाकी जो लोग हैं जो बुद्धिजीवी हैं जो चिंतनशील है जो समाज को आगे बढ़ाना चाहते हैं जो सामाजिक संगठनों के माध्यम से समाज को दिशा देने का कम करते हैं अगर उनकी जाती उनसे मेल नहीं खाती है तो वे या तो दूरी बनाकर रखेंगे या औपचारिकता में ही इस बात को स्वीकार करेंगे उत्सव का हिस्सा नहीं बनेंगे यह दोस्त जाती की मानसिकता के कारण है जो दूर है ये भी जाती से पीड़ित हैं जो नजदीक है वे भी जाती से पीड़ित है और दोनों ही रोगी रोग को महत्व देते हैं लेकिन रोग को दूर करके मानवता को जोड़ने में उनकी भूमिका गोंड हो जाती है हर बार झांकियां निकलती हैं हम नारे भी लगाते हैं हम बराबरी की बात भी करते हैं लेकिन 24 घंटे के बाद और 24 घंटे के दौरान भी हमारा ना भाव बदलता है ना विचार बदलता है ना चिंतन बदलता है और हम उसी जाती का महिमामंडन करने लग जाते हैं मैं जो बात आज कहना चाहता हूं हमसे बीमार होते हैं और बीमारी हमेशा पिङादायक होती है उसे बीमारी से निजात पाने के लिए हम डॉक्टर के पास जाते हैं डॉक्टर हमें दावा देता है और दावा लेने का मकसद है की बीमारी खत्म हो जाए लेकिन यहां हम बीमार हैं जानते भी हैं डॉक्टर के पास जाते हैं यह हमारे महापुरुष हमारे लिए चिकित्सा का कम करते हैं वे हमें दावा भी देते हैं और हम दावा लेकर के और ज्यादा बीमार हो रहे हैं दोस्त दावा का नहीं है दोस्त चिकित्सक का नहीं है दोस्त महापुरुषों का नहीं है हम उसी जाती को उसी बीमारी को अपना अधिकार मैन बैठे हैं अन्यथा जो रविदास जी को अपना आदर्श मानते हैं जो रविदास जी को अपना रहबर मानते हैं गुरु मानते हैं क्या उन्हें नहीं चाहिए की वह सबसे पहले उनके द्वारा कही हुई बातों को ठीक से सोचे मनन करें चिंतन करें और किस प्रकार से रोग से बचा जा सकता है हम कम करें अगर गुरु रविदास जी की जयंती मानते मानते आयोजक रूपांतरित हो जाए उनके समर्थक रूपांतरित हो जाए और उनके साथ चलने वाले लोग इस रूपांतरण को देखकर के समझने लग जाए तो मैं समझता हूं जाती एक पाल में खत्म होगी कम से कम जो रविदास जी को प्रणाम इसलिए मैं आज अपनी जाती का प्रयत्न करता हूं अपनी जाती का त्याग करता हूं और अपने आप को जाती संभोग होने की घोषणा करता अगर ये घोषणा करें तो फिर यही सत्संग है सत्संग का मतलब है यही सच है की जाती एक रोग है और मैं इस संघ के संग खड़ा हो गया तो ये सत्संग हो गया लेकिन अभी हमने सत्संग को सत्य के संग खड़ा होना नहीं समझा हमने सत्संग का अर्थ ले लिया की एक व्यक्ति खड़े होकर के गीत गए दूसरा व्यक्ति ढोल बजाए तीसरा हारमोनियम बजाए और चौथा टेस्ट मिले यह सत्संग हो गया सत्संग का मतलब गाना नहीं है सत्संग का मतलब कीर्तन नहीं है सत्संग का मतलब डांस करना नहीं है सत्संग का मतलब झांकी भी नहीं है और सत्संग का मतलब हमने कितने बड़े पैमाने प्रयोजन किया ये भी नहीं है सत्संग का मतलब भंडारा भी नहीं है सत्संग का मतलब दिए जाने वाला प्रसाद भी नहीं है सत्संग का मतलब है जो सत्य सत्य है जो हमारे महापुरुषों ने अनुमोदित किया है जो सच्चाई को महापुरुष ने उजागर किया है जो हमारे लिए कल्याणकारी है उसे बात को उसी रूप में स्वीकार करके हम अपने जीवन का हिस्सा बना लें हम उसे बात के साथ खड़े हो जाए उसे सत्संग कहा जाएगा लेकिन हम लोग गीत संगीत को सत्संग मैन लेते हैं गीत बजाने वाला खुश गीत गाने वाला खुश गीत सुनने वाला खुश और हम कहते की हम सत्संग में गए द हम कार्यक्रम में गए द हम झांकी में गए द और हमारा कम पूरा हो गया एक विषय पर बहुत सारी बात की जा सकती है लेकिन बात यह नहीं है की बात कितनी की जाए सवाल इतना सा है जाती एक रोग है जाती कुछ आता है और इसे मानवता पीड़ित है इंसानियत जुड़ नहीं सकती भाईचारा बन नहीं सकता और जाती की गत मानसिकता के कारण भेदभाव का जन्म होता है और इस भेदभाव से हम पीड़ित हैं और गुरु रविदास जी ने हमें मार्ग दे दिया है हम जाती को बीमारी समझे और जाती को नष्ट करें और जाती को नष्ट करेंगे तब हम सच्चे गुरु रविदास जी के अनुयायी कहा पाएंगे अन्यथा तो ये एक रसम ए जाएगी होगी एक परंपरा होगी हम पहले भी जो द आज भी वही बने पड़े रहेंगे और बात इतनी नहीं है हम जब जाती का महिमामंडन करते हैं तो हम अमानवीय व्यवस्था का समर्थन करते हैं जाती के नाम पर गीत बनाकर के हम गेट हैं तब हम उसे आम आदमी की व्यवस्था के साथ खड़े हो जाते हैं जातीय आधार पर गीत बनाकर के जब हम नाचने लगते हैं इसका मतलब है हम मनुवाद का पोषण करने का कम करते हैं अपने समाज में दूसरे लोगों में जाती के प्रति एक प्रेम पैदा करने का कम करते हैं जब हमारे मैन में जाती के प्रति प्रेम पैदा होता है तो दूसरा व्यक्ति हमारे से घृणा करने लगता है क्योंकि उसके अंदर जाति का प्रेम पैदा होने लगता है उसके अंदर भी जाति का प्रेम पैदा होता है परिंदे भी जाति का प्रेम पैदा होता है और जातियों के प्रेम ने ही ये द्वेष को पैदा किया है और इसके कारण एक बहुत बड़ा विध्वंस हुआ है समाज समाज नहीं बन सका है गुरु रविदास जी की इन दो बातों को ठीक से सुने ठीक से समझे और इसको जीवन में उतारने का प्रयास करें गुरु रविदास जी की यह बात मानने का अर्थ है बाबा साहब की बात को मानना और महापुरुषों की बातों को मानना महाकारुणिक बुद्ध की बात का अनुसरण करना महापुरुष कोई भी हो जिन्होंने भी जाति को रोग कहा है वो हमारे लिए इस सामाजिक बुराई के चिकित्सक है उनकी भूमिका एक मार्गदर्शक की भूमिका है उनकी भूमिका रोग से मुक्त करने की भूमिका है
