क्या हम समझ पाए की मनुस्मृति क्यों जलाई गई? / Did we understand why Manusmriti was burnt?
3/9/20251 min read


25 दिसंबर 1927 को बाबा साहेब ने मनुस्मृति को जलाया और उसे जलाते समय बाबा साहेब ने दो बातें कही थी अगर यह दो बातें समझ में आ जाए तो धम्म उत्सव का अर्थ भी समझ में आ जाएगा पहली बात तो बाबा साहेब यह कही कि मैं उस विधान को इसलिए जला रहा हूं कि यह मेरी बुद्धि को नहीं जच रहा है हजारों वर्षों के बाद पहली बार किसी व्यक्ति ने ज्ञान के बल पर बुद्धि के बल पर उसे चुनौती दी यह साहस बाबा साहेब से पहले कोई नहीं कर सका था और उसके बाद जो दूसरी बात कही बहुत महत्वपूर्ण बात कही कि मैं इस स्मृति को इसलिए जला रहा हूं क्योंकि यह अमानवीय है और शासन व्यवस्था को चलाने का ग्रंथ कोई विधान अमानवीय हो वह मानवता के लिए कलंक होता है यह दो बातें कह कर के बाबासाहेब ने उसे जलाया और कागज़ की मनुस्मृति जल गई आज जो मनुस्मृति नहीं हैं उसकी जगह है पर बाबा साहेब का लिखा हुआ समता , बंधुता, और न्याय पर आधारित भारत का संविधान इस देश में लागू है शासन व्यवस्था का चलन इस भारत के संविधान से होता है जिसको बाबासाहेब ने लिखा है इसीलिए हम आज उत्सव मना पा रहे हैं अगर भारत का संविधान ना होता शायद हम आज कोई भी उत्सव ना मना पाते बाबासाहेब ने जो किया वह कर दिया लेकिन उसका प्रभाव आज हमारे मन और मस्तिष्क पर है हम आज भी उससे मुक्ति नहीं हो पा रहे हम आज जो हम कर रहे हैं उसी के प्रभाव में कर रहे हैं हमारा सारा जीवन इस व्यवस्था के अधीन है मनुस्मृति जलाने का मतलब था जो जाति के आधार पर भेदभाव बना हुआ है हम जाति व्यवस्था को बचाए,हुए हैं बनाएं हुऐ हैं यह अमानवीय है जो भी मानव सभ्यता में हमारे समाज में जाति के आधार पर जो भेदभाव होता है यह अमानवीय है अगर बाबा साहेब के अनुयाई होते हुए हैं हम जाति व्यवस्था को मान रहे हैं उसका पोषण कर रहे हैं और जाति को बचाए हुए हैं तो में समझता हूं तो हमें बाबा साहब समझ में नहीं आए इसलिए बाबा साहब को समझना है धम्म को समझना है तो जाति को तोड़ना होगा खत्म करना होगा और यह खत्म करने के लिए कुछ और नहीं हमें बुद्ध की शरण में जाना होगा जब हम बुद्ध की शरण में जाएंगे तो हम बौद्ध बन जाएंगे और जो बौद्ध होता है उसकी कोई जाति नहीं होती बस इतना ही समझना था हमें बाबा साहब का अनुसरण करना था बुद्ध की शरण में जाते तो हम बौद्ध हो जाते और बौद्ध हो जाते तो हमारी जाति खत्म हो जाती तो बाबासाहेब का जो मनुस्मृति जलाने का जो प्रयोजन था जो सिद्ध हो जाता लेकिन हम बाबासाहेब की आज बात भी कर रहे हैं बाबा साहब को मान भी रहे हैं जय भीम भी बोलते हैं नमो बुद्धाय भी बोलते हैं लेकिन जाति को बचाए हुए हैं और याद रखना जब तक की जाति व्यवस्था बनी रहेगी हमारे मन में भी यह भेद बना रहेगा इसी भेद के कारण ही हम समाज को एकजुट नहीं कर पा रहे।
