बुद्ध ईश्वर है या उनके दूत हैं Is Buddha God or his messenger?
2/24/20251 min read


विश्व के महान सस्ता सम्यक सम् बुद्ध को सादर नमन कि प्रभुत्व उपासक उपासिकाऔ दुनिया में जितने भी धर्म है उनका कोई न कोई संस्थापक है। जब धर्म की बात करते हैं तो उसके साथ उसके संस्थापक का नाम भी जुड़ा होता है इससे एक बात और प्रत्येक धर्म के संस्थापक ने उस धर्म में अपना एक विशिष्ट स्थान सुनिश्चित कर रखा है लेकिन जब हम बुद्ध की बात करते हैं बौद्ध धम्म की बात करते हैं हम यह तो जानते है कि बौद्ध धम्म के संस्थापक महक कार्मिक बुद्ध है लेकिन तथागत ने कि बौद्ध में अपना कोई अपना कोई स्थान निश्चित नहीं किया है। मैं इसको ठीक से समझने के लिए कि हम इसाई धर्म की चर्चा करते हैं और इसाई धर्म के संस्थापक मैं इसा मसिहा हैं। इसा मसिहा इसाईयत की स्थापना करने के साथ-साथ यह भी घोषणा की, कि वह परमेश्वर के पुत्र हैं मैं उस दूसरी शर्त यह भी रखी दि , जो भी इसाईयत में विश्वास रखते, अगर उसे मुक्ति की कामना करनी है उसे निजात पानी है तो उसे इस बात को स्वीकार करना पड़ेगा का यह वह परमेश्वर के पुत्र है तो इसा मसीहा एक अनिवार्य शर्त लगा दी प्रत्येक ईसाईयत के लिए, प्रत्येक इसाईयत को मानने वाले व्यक्ति के लिए, कि वह इस बात को अवश्य स्वीकार करें कि ईसू मसीह परमेश्वर के पुत्र हैं कि इस प्रकार से उन्होंने इसाई धर्म में अपना एक विशिष्ट स्थान बना लिया है कि जब हम इस्लाम की बात करते हैं ।कि इस्लाम धर्म के संस्थापक और हजरत मोहम्मद साहब हैं, उन्हें भी शर्त की है कि उन्होंने भी इस्लाम धर्म की स्थापना के साथ यह शर्त रख दी है कि वे खुदा के पैगंबर है और प्रत्येक इस्लाम धर्म के अनुयाई के लिए दोश र्ते मानना अनिवार्य कर दिया है ,कि यदि उन्हें निजात पानि है उन्हें मुक्ति पानि है तो दो शर्तों का पालन अनिवार्य पहली तो यह कि हजरत मोहम्मद साहब यानी कि वे स्वयं इसके संस्थापक उन्होंने पहली शर्त रखी कि खुदा के पैगंबर है और दूसरी शर्त रखी कि खुदा के अंतिम पैगंबर हैं इसके बाद कोई और पैगंबर होगा ही नहीं जो व्यक्ति दो शर्तों इन शर्तों को स्वीकार नहीं करता उसे इस्लाम के रूप में स्वीकार नहीं किया जाता है लेकिन जब हम बौद्ध धम्म बात करते हैं कि तथागत ने बोद्ध धर्म की स्थापना के साथ धम्म में उन्होंने अपना कोई स्थान नहीं रखा है उन्होंने इस बात को स्वीकार किया कि वह शुद्धोधन और महामाया के स्वभाविक पुत्र है इसके अतिरिक्त कुछ और नहीं है अब हम इसको जानने की कोशिश करें कि तथागत ने ऐसा क्यों कहा और इसका आधार क्या है कि तथागत के महापरिनिब्बान के बाद है कि राजगृह में बौद्ध संगीति का आयोजन किया गया है कि इस बौद्ध संगीति की अध्यक्षता भिक्षु महाकाश्प ने की उनके साथ भिक्षु आनंद, भिक्षु उपालिक और तथागत के महापरिनिर्वाण के समय मैं जब बहुत सारे आरत भिक्षु थे, वे सब उस संगीती में उपस्थित थे।माहाकश्प ने उसे सगिती में आनंद से पूछा _हे आनंद धम्म को दौहराएं ,तो आनंद ने धम्म म को दोहराया तब कश्यप ने उस संगति में बैठे हुए भिक्षुओं से पूछा कि क्या यह सच है और भिक्षुओं ने इसका अनुमोदन किया है का तब स्वीकार कर लिया गया इस प्रकार से महाकशप्प धर्म के बारे में आनंद से पूछते रहे और आनंद उसे सुनाते रहे, भिक्षु उनका अनुमोदन करते रहे और बात स्वीकार करने गई थी कि इसके पश्चात् महाकश्यप अपने भिक्षु उपालिक से कहा और विनय को दोहराये , भिक्षु उपाली ने विनय को दौड़ाया ,ठीक उसी प्रकार महाकश्यप ने उस संगति में बैठे व्यक्ति को से पूछा क्या यह सच है और उन्होंने उसका अनुमोदन किया तो उसे स्वीकार कर ली है बौद्ध संगति में केवल धम्म और विनय के ऊपर ही प्रश्न पूछे कि क्या ऐसा नहीं होना चाहिए था है कि महाकशप्पा बुद्ध के जीवन के बारे में भी पूछते हैं,अगर वह ऐसा करते है तो बुद्ध के जीवन के बारे में जानने के लिए हमारे पास बहुत कुछ होता हम उनके जीवन चरित्र को ठीक से समझ पाते लेकिन माहाकश्यप ने ऐसा नहीं किया , और इस वजह से अब हमारे पास बुद्ध के जीवन के बारे में जानने के लिए बहुत ज्यादा कुछ नहीं है अब स्वाभाविक प्रश्न उठता है कि माहाकश्प ने जान-बूझकर कैसा किया है या इसके पीछे कोई और भावना थी तो इस बात को समझने के लिए हम कुछ पिछली घटनाओं का जिक्र करेंगे तो कि तथागत ने कभी भी धम्म में अपना स्थान सुनिश्चित नहीं किया महापरिनिर्वाण से पूर्व वाहा जो अर्त भिक्षु बैठे थे, उन्होंने तथागत से निवेदन किया हे तथागत_ आप अपना उत्तराधिकारी नियुक्त करें पहली का निवेदन किया तब तथागत ने अस्वीकार कर दिया पुणे निवेदन किया कि फिर भी तथागत ने अस्वीकार कर दिया, तिसरी बार भी निवेदन किया तब तथागत ने अस्वीकार कर दिया और यह कहा धम्म ही धमम का उत्तराधिकारी है । धम्म को धम्म संस्थापक का उत्तराधिकारी नियुक्त करने की कोई आवश्यकता नहीं है यदि किसी सिद्धांत को किसी व्यक्ति के अधिकार की आवश्यकता पड़े तो सिद्धांत नहीं है और फिर सिद्धांत का उपयोग क्या होगा इसलिए तथागत ने धम्म को सर्वोपरि रखा और धम्म से अपने आप को नहीं जोड़ा और ना ही धम्म में अपना स्थान सुनिश्चित किया तथागत का मानना था कि धम्म की स्थापना के लिए ,संस्थापक का नाम करते रहने से कोई धम्म की प्रतिष्ठा स्थापित नहीं होती है धम्म की गरिमा , धम्म का गौरव, धम्म से ही है और इस प्रकार हैं कि तथागत ने लोगों के कल्याण के लिए बहुत सारे उपदेश दिये लोगों के जीवन को सुखी बनाने के लिए धम्म की स्थापना की लेकिन स्वयं को इससे अलग रखा और आज हम देख ही रहे हैं किसी भी व्यक्ति को अपनी मुक्ति की कामना करनी है अपना कल्याण करना है तो उसके लिए तथागत के द्वारा बताया गया एक अनुपम सुंदर मार्ग है और जो व्यक्ति इस मार्ग को समझता है उसका अनुसरण करता है उस पर चलने लगता है उसका कल्याण हो जाता है भले ही वे बुद्ध को याद रखें या ना रखें यह मार्ग महत्वपूर्ण या उस मार्ग पर चलना महत्वपूर्ण है अभी तक हम देख रहे हैं प्राय सभी धर्मों के लोग जब को मुक्ति की कामना करता है तो वह अपने संस्थापक को याद करता है उसे याचना करता है प्रार्थना करता है या पुणे लौट क्या हमारा कल्याण करो हमें दुखों से मुक्त करो ,नाना प्रकार की बातें कोई आरती भी करता है कोई स्तुति गान करता है कोई भोग लगाता है इस प्रकार प्रत्येक धर्म के अपनी मान्यताएं अपनी परंपराएं अपनी पूजा पद्धति हैं लेकिन बोद्ध धम्म में ऐसा कुछ नहीं है ।कोई भी धर्म का अनुयाई बुद्ध से कुछ मानता नहीं है कोई भी बुद्ध का अनुसरण करने वाला व्यक्ति यह काम नहीं करता है कि बुद्ध मेरा कल्याण करेंगे तो ,उसे विश्वास रहता है कि जिस मार्ग की खोज बुद्ध ने की है इस वक्त कल्याण पथ है उस मार्ग पर चलने से मेरा कल्याण होगा और मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित होता है चलता है उसका कल्याण होता है तब बुद्ध के प्रति आगाध श्रद्धा पैदा होती ,है एक विश्वास पैदा होती ,यह विश्वास उस मार्ग से मिला है। उसे शिक्षा से मिला है उस सिद्धांत से मिला है जिस पर चलने से कल्याण हुआ है बुद्ध के धम्म की स्थापना बुद्ध का धम्म अन्य धर्मों से बिल्कुल अलग है यहां व्यक्ति के कल्याण के लिए सिद्धांत या दुखों से मुक्ति का एक मार्ग है जीवन की श्रेष्ठता के लिए जीवन की निर्मलता के लिए एक व्यापक प्रदर्शन है बस आवश्यकता इस बात की है कि हम ठीक से उसे जान लें और ठीक से आचरण में उतार लें ,इस प्रकार हम कह सकते हैं कि बुद्ध का धम्म अनुपम है अनूठा है और सब के कल्याण करने वाला है अगर हम ईसाईयत की बात करें तो बिना इसा मसीह के परमेश्वर का दूध स्वीकार के बिना मुक्ति संभव नहीं है अगर हम इस्लाम की बात करें हजरत मुहम्मद साहब को खुदा का पैगंबर स्वीकार किए बिना मुक्ति संभव नहीं है लेकिन बुद्ध ने जो मार्ग दिया, बुद्ध ने जो जीवन के कल्याण की स्थापना के लिए एक धम्म का आविष्कार किया अगर कोई व्यक्ति बुद्ध को स्वीकार न करें ,तो भी कल्याण की पूरी संभावना है कल्याण के लिए दुःखों से मुक्ति के लिए , जीवन को श्रेष्ठ बनाने के लिए, के मार्ग पर चलने की आवश्यकता है उस सिद्धांत उस विचार को आचरण में उतारने की सकता है इसलिए धम्म महत्वपूर्ण है धम्म का सिद्धांत महत्वपूर्ण है और धम्म का मार्ग महत्वपूर्ण है और यही बात बुद्ध को अन्य धर्मों के संस्थापकों से अलग करती है और यह जानकर कर के कि धम्म महत्वपूर्ण है क्योंकि वह कल्याण का पथ है धम्म महत्वपूर्ण है क्योंकि वह सिद्धांतों का पथ है धम्म महत्वपूर्ण है क्योंकि वह कालांतर तक लोगों का मार्ग प्रशस्त कर सकता है अगर किसी धर्म को उसके किसी अध्यक्ष की आवश्यकता है तो फिर वह धर्म-धर्म नहीं है और किसी व्यक्तिगत नाम रटते रहो उसका कोई मूल्य नहीं है इसलिए बुद्ध ने स्पष्ट किया उन्होंने धर्म की स्थापना में अपना कोई स्थान सुनिश्चित नहीं किया हमें धम्म की इस गरिमामय इस गौरवशाली परंपरा को समझना चाहिए इस सिद्धांत के अनूठे और निराले स्वरूप को समझ करके हमें आचरण उतरना चाहिए और जो भी बौद्ध धर्म के प्रचारक हैं जो भी धम्म का प्रसार करना चाहते हैं उनको भी चाहिए कि वे सिद्धांतों का प्रचार करें यह मार्ग प्रशस्त करने का काम करें जब व्यक्ति को सिद्धांत में आएगा, जब व्यक्ति को मार्ग समझ में आयेगा तो बुद्ध के प्रति सर्धा ,बुद्ध के प्रति विश्वास तो स्वत ही बन जाएगा और हम यह अंतर लोगों के बीच में स्पष्ट करना चाहिए है कि बौद्ध धम्म की स्थापना बुद्ध ने की इस सारे सिद्धांतों का प्रतिपादन बुद्ध ने किया लेकिन जीवन कल्याण के लिए बुद्ध का नाम रट लेने से ही काम नहीं बनेगा जीवन कल्याण के लिए बुद्ध का स्तुतिगान करने से ही बात नहीं बनेगी जीवन कल्याण के लिए हमें बुद्ध के द्वारा बताए हुए मार्ग पर चलना होगा अनुसरण करना होगा और आचरण में उतारना होगा इसी समाज कल्याण होगा इसी कल्याण की भावना के साथ सबका मंगल हो
