भंते जी की जाति क्या है? What is Bhante ji's caste?

देश की सीमाओं से बाहर जाते हैं ,तो अधिकांश भिक्खू उपासक उपासिका इस बात की तलाश में रहते कि भंते जी की जाति क्या है बौद्ध बनने के बाद भी भिखू की जाति ढूंढ रहे हैं इसका मतलब वह लोग रोग ग्रस्त है ,बीमार हैं बाबा साहब ने कहा था कि बीमारी को लेकर के बौद्ध धम्म में मत आना और हमने नहीं मानी लेकर चले गए ,इसके लिए हमें क्या करना है, बौद्ध बनना है तो हमें तैयार करना होगा अपने आप को इस घोषणा के लिए कि मेरी कोई जाति नहीं है अब मैं बौद्ध हूं बुद्ध का अनुयाई हूं बुद्ध मेरे शस्ता है बाबा साहब डॉक्टर अंबेडकर ने मुझे यह मार्ग दिया है इसलिए आज से मैं मुक्त मानव हूं बाबा साहब ने भी दीक्षा ली तो यही कहा था कि अब मैं एक मुक्त मानव हूं, मैं नरक से मुक्त हुआ हूं ,इस जाति व्यवस्था को बाबा साहब नरक कहते थे, मैं इस नरक से मुक्त हुआ हूं। और मैं एक मुक्त मानव हूं .........तो क्या यह बाते हमारे अंदर नहीं आनी चाहिए कि हम एक मुक्त मानव है, हम भी इस नरक से मुक्त हुए हैं ,जब हम नरक से मुक्त होने की बात करते हैं तब समझ में आता है, कि मुक्त होने का एहसास क्या है, अगर हम उस एहसास को नहीं करेंगे तो फिर बौद्ध बन पाना बड़ा कठिन है ।इसके लिए कुछ करना होगा सबसे पहले अपने मन को तैयार करें, मन तैयार हो जाए कि मैं दीक्षा ले रहा हूं अगर मैं बौद्ध बन रहा हूं तो मुझे जाति का त्याग करना है पहले अपने मन को तैयार करो अपना मन तैयार होगा तब हमें अपने परिवार को भी तैयार करना, कि बौद्ध बनेंगे तो अपनी जाति को नहीं लेकर जाएंगे जाति को छोड़ कर के जाएंगे इसी जाति की परेशानी से मुक्त होने का तो भाव था ।परिवार हो सकता है संकोच करें ,वह यह बात जानना चाहे कि हमें जाति क्यों बदलनी है तब हमें परिवार के सदस्यों को इसके पीछे होने वाली पीड़ा को बताना है कि जाति से हमारा कैसे अपमान होता है कदम -कदम पर किस प्रकार हमें अपमानित होना पड़ता है बिना अपराध के लिए बिना अपराध किए भी हमारे मन में हमेशा अपराध भाव रहता है एक ऐसा भाव कि हमें लगता है कि हम अपराधी है और इस कारण हमें अपमान को सहन करना पड़ता है जिसका परिणाम यह होता है कि हमारा मनोबल प्रभावित होता है हमारा मनोबल टूट जाता है हम ऊंचे मनोबल के साथ काम नहीं कर पाते हैं और जब मनोबल टूटता है तो हमारे अंदर हीन भावना का संचार होता है और यह हीनता हमारे मन के उत्साह को भी खत्म कर देती हैं अब ये नई पीड़ा को जन्म देता है हमारे पास सामर्थ्य है हम सामर्थ्य वान है तो भी हमारा मनोबल क्यों गिर जाए हमें क्या करना होगा अपने परिजनों को परिवार के लोगों को बताना होगा । कि मनोबल जीवन का सबसे महत्त्वपूर्ण पक्ष है अगर किसी व्यक्ति के पास मनोबल नहीं है तो उसके सारे बल क्षीण हो जाते हैं मनोबल नहीं है तो उसके पास कोई विचार ही नहीं है उसके पास कुछ करने को है ही नहीं उसका सारा सामर्थ्य चकना चूर हो जाता है इसलिए सामाजिक ताने बाने में इस प्रकार के शब्द घड़ लिए गए हैं कि वो अगर अच्छा भी बोलते हैं तो भी हमारे मनोबल को चकनाचूर करने के लिए बोलते हैं तो परिवार को समझाना पड़ेगा किस जाति व्यवस्था से किस प्रकार से हमारा मनोबल प्रभावित होता है अगर कदम कदम पर हमारे साथ ऐसा भाव नहीं होता तो हमारा मन मनोबल बहुत ऊंचा होता और उस ऊंचे मनोबल के साथ हम अपने जीवन में बहुत बेहतर करते, क्योंकि जाति की मानसिकता से मनोबल टूटा है और उस टूटे हुए मनोबल से हमारे लक्ष्य प्रभावित हुए हैं हमने जीवन की ऊंची कल्पनाओं को ऊंची उड़ानों को जगह ही नहीं दी है ,इस क्षति का कोई मूल्यांकन नहीं कर पा रहा अबोध रह कर के जाति के लाभ को देखते हैं लेकिन लाभ के पीछे होने वाली पीड़ा को होने वाली अनुभूति को हमने क्या खोया इसको समझने के लिए किसी पास समय ही नहीं है तो परिवार को समझाना पड़ेगा कि इसका क्या प्रभाव पड़ा है इसलिए मैंने छोटा सा उदाहरण दिया कब तक हम इसे झेलते रहेंगे और आने वाली पीढ़ी को भी इसी यातना से गुजर जाने देंगे हमें समझाना होगा परिवार को कि हमारे साथ दोम दर्जे का व्यवहार होता है उस उसके कारण हमारा मन कमजोर हो जाता है और हमेशा सहारा ढूंढते हैं बैसाखी ढूंढते हैं बस कोई सहारा मिल जाए ताकि मैं किनारे पर पहुंच जा जीवन यापन के लिए सहारा संकट के समय कोई सहारा दे दे किसी न किसी रूप में हम बैसाखी की तलाश करते हैं मन में डर और भय का वातावरण बना रहता है और यह डर और भय का वातावरण हमें शोषण और उत्पन का शिकार बनाता रहता है हो सकता है कि कुछ लोग गांव से निकल कर के शहर में आ गए हो उनके साथ ये पीड़ा कम हो लेकिन ऐसा नहीं है कि गांव से शहर में आते ही पोस्ट कॉलोनियों में एक एक करोड़ का घर बनाने के बाद भी उस कॉलोनी के लोग हमारे साथ कैसा व्यवहार करते हैं यह बात किसी से छुपी नहीं है गांव में भी हम अल्प मत में थे और शहरों में आकर के भी उन्हीं कॉलोनियों में अल्प मत में आ गए अलीगढ़ में सांगवान सिटी है वहां तो बाबा साहब की जयंती नहीं मनाने दी उस सांगवान सिटी के दूसरे नागरिकों ने बाबा साहब की जयंती नहीं मनाने दी और हम लोग खुश हो जाते हैं कि मैं फलाना सिटी में रहता हूं ये सारी सिटी सारी सोसाइटी सारे नगर सारे महानगर इस बीमारी के संक्रमण से ग्रसित है तो यह हमें असुरक्षा का माहौल देते हैं हम मकान लेते बड़े खुश हो जाते हैं लेकिन थोड़े दिन के बाद सामने वाला अड़ोस वाला पड़ोस वाला जब ऐसा व्यवहार करता है तब हमारा मन संका से भर जाता है और हमारे मन में असुरक्षा का वातावरण पैदा होता है और ये असुरक्षा का वातावरण हमें दया का पात्र बना देता है दूसरे लोग हमें पहले डराते हैं फिर हमें दबाते हैं हमारा शोषण करते हैं फिर हमारे साथ सहानुभूति का व्यवहार करते हैं और ये सहानुभूति का व्यवहार हमें उसी अवस्था में बने रहने के लिए एक संभावना दे देता है कोई बात नहीं ये लोग कितना सहानुभूति रखते हैं यह लोग हमारे साथ कितना अच्छा व्यवहार करते हैं लेकिन शोषण का एक दूसरा ही हतकंडा होता है तो हमें परिवार के लोगों को इस सब को समझाना पड़ेगा एक शंका भी पैदा होती है जब आप समझाएंगे तो परिवार के लोग कहेंगे ये कैसे करेंगे जाति छोड़ेंगे तो हमारे सगे संबंधियों का क्या होगा क्या वो हमारे रिश्तेदार नहीं रहेंगे क्या हम उनके साथ आना जाना नहीं रखेंगे फिर हम अपने बच्चों की शादी कहां करेंगे रोटी बेटी का संकट आ जाएगा कैसे रिश्ते नाते करेंगे संकट में कौन हमारा साथ देगा सारे मोहल्ले के लोग भी हमें पराया मानने लगेंगे हम किसी के घर आना जाना कैसे कर पाएंगे आपस में लोग आसपास के लोग हमसे वैर करने लगेंगे अनगिनत शंकाएं पैदा होने लगती है और जो होती नहीं है हम उनको भी अपनी आशंका में शामिल कर लेते तो य एक उत्तर बनता है हमें परिवार को समझाना होगा कि निश्चित रूप से ऐसा होगा जितनी आशंकाएं व्यक्त की है वह सारी आशंकाएं हमारे सामने आएंगी लेकिन उसका निराकरण क्या है क्या हम अपमान को हमेशा झेलते रहे इन छोटी-छोटी आशंकाओं के कारण अगर कोई हमें हमारे साथ अच्छा व्यवहार कर रहा तो क्या आज वो अच्छा व्यवहार कर रहा है जो लोग इस बात से हमें नकार कि हम बौद्ध बन गए हैं और वह हमारे साथ संबंध नहीं रखना चाहते हम ,चाहेंगे कि वो जल्दी से जल्दी अपने संबंधों को बिगाड़ ले, जातिवादी मानसिकता के लोग हमसे संबंध रखें हम क्यों स्वीकार करेंगे लेकिन एक संभावना है हम अकेले नहीं है बौद्ध बनने वाले जो लोग हमसे पहले बौद्ध बन गए हैं उनकी भी समझ में भाव आएगा कि बौद्ध बने हैं तो जाति किस काम की उन्हें पता लगेगा कि एक कोई बौद्ध बना है उसने जाति को तोड़ा है तो जाति को तोड़ने वाले जाति को छोड़ने वाले जब साथ इकट्ठे होने लगेंगे उनका एक नया समाज बनने लगेगा उस समाज के लोग आपस में प्रेम करने लगेंगे उस समाज के लोग आपस में रोटी बेटी का संबंध करने लगेंगे बौद्ध बने जाति तोड़ी नहीं बच्चों की शादी का समय आता तो अपनी ही जाति में लड़का या लड़की ढूंढने लगते हैं और अपनी जाति में ही शादी करेंगे अपने सजातीय लोगों को आमंत्रण देंगे और नाटक बौद्ध होने का पात्र सारे अबोध मिशन बाबा साहब का पूरा हो गया ना कुछ छूटा ना कुछ टूटा ना कुछ नया बना यह आंख मिचोनी है और अगर मैं सही शब्दों में बात करूं यह खुद को धोखा देना है और खुद को धोखा देने से ज्यादा ज्यादा अपने महापुरुषों के साथ किया गया विश्वास घात है ये विश्वास घात है हमने अपनी आशंकाओं के कारण महापुरुषों के साथ धोखा किया बाबा साहब के साथ धोखा किया बाबा साहब की धम्म क्रांति के साथ धोखा किया और हम अपने जीवन के मूल्य को नहीं बना पाए तो आज समय आ गया गया है यह बात हमारी समझ में आई है कि हमें बौद्ध बनना है अगर बौद्ध बनना है ,या बने हैं तो बिना जाति बिना गोत्र और पिछली पहचान को छोड़े बिना बौद्ध नहीं बनना है आज तक भले किसीने य बात कही हो ना कही हो लेकिन बुद्धिस्ट मेनिफेस्टो की एक महत्त्वपूर्ण शर्त होगी कोई भी व्यक्ति जाति को लेकर के गोत्र को लेकर के पिछली पहचान को लेकर के बौद्ध नहीं बनेगा बौद्ध समाज ऐसे व्यक्ति को कभी भी स्वीकार नहीं करेगा प्रिय उपासक उपास ये महत्वपूर्ण विषय है यह समय बड़ा महत्वपूर्ण है आज हम फक्र के साथ सम्मान के साथ स्वाभिमान के साथ कह सकते हैं कि बौद्ध समाज का निर्माण प्योरिटी के साथ ,निर्मलता के साथ होने वाला है क्योंकि जाति जैसा रोग जाति जैसा दैत्य जाति जैसा आधार जिसने मानता को चकना शुर किया है वह आज के बाद हमारे जीवन का हिस्सा नहीं रहेगा प्रत्येक बौद्ध घोषणा करेगा वो समय में 15 ,16 जून को आ सकता है लेकिन मैं चाहता हूं उस घोषणा पत्र की ड्राफ्टिंग के समय हमारे पास एक ऐसा समाज हो ऐसे लोग हो जो घोषणा करने के लिए तैयार हो कि आज से मैं अपनी जाति अपना गौत्र और पुरानी पहचान जो जाति से संबंध रखती है पिछले धर्म से संबंध रखती है उसको आज से मैं छोड़ता हूं उसका त्याग करता हूं परित्याग करता हूं प्रभु उपासक उपा सिकाओ यह शुरुआत होनी चाहिए और मैंने आज से ही पूछना शुरू कर दिया है मैंने आज से इस काम की शुरुआत कर दी है आज मैंने कुछ लोगों से बात की है वे लोग तैयार है जाति तोड़ने के लिए जाति को छोड़ने के लिए पुराने नाम जिसमें जिससे स्पष्ट पहचान लगती है कि आप पिछली व्यवस्था के आदमी हैं उस पहचान को भी हमें खत्म करना है तो जो भी धम्म भूमि के प्रतिनिधि हैं धम्म भूमि के साथ खड़े हैं "धम्म भूमि के श्रेष्ठ जीवन के आंदोलन "का हिस्सा बने हैं तो उन्हें अभी समय है हमारे पास पूरा डेढ़ महीने का समय है अपने अपने परिवार को तैयार करो जाति को छोड़ने की पहल करो यह देश में बाबा साहब की धम्म क्रांति के 70 वर्षों के बाद शुरू होने वाला बहुत बड़ा आंदोलन होगा हम किसी का विरोध नहीं कर रहे हैं हम किसी के खिलाफ नहीं खड़े हैं हम अपने ही जीवन के उस कलंक को धोने का काम कर रहे हैं आपको याद होगा महार के जल आंदोलन पर जब पहली बार बाबा साहब ने महार के ताला पर पानी पिया 20 मार्च का दिन था पानी पीने के बाद बाबा साहब सर्केट हाउस में चले गए थे और पीछे से आते लोगों ने अफवा फैला दी और सैकड़ों लोग लाठियां लेकर के आ गए लोगों को पीटने लगे उनकी बैल गाड़ियों को पलट दिया कुछ लोग खाना बना रहे थे उनके खाने को बखर दिया और निर्दोष लोगों को बेरहमी से पीटने लगे बाबा साहब को पता लगा तो बाबा साहब दौड़ते हुए आए उस मार पिटाई को रोका और उसके बाद लोग को संबोधित किया बाबा साहब ने कहा अभी तक तो हम यह सोचते थे कि छुआछूत हिंदू धर्म के माथे पर लगा हुआ कलंक है इसलिए इस धोने की जिम्मेदारी हमने उन्हीं को सौप रखी थी कि तुम्हारे धर्म का कलंक है तुम ही धो लेकिन आज इससे पता लग गया यह सिद्ध हो गया है हमारे माथे पर लगा हुआ यह छुआछूत का जो कलंक है यह हिंदू धर्म के पर नहीं यह हमारे माथे पर लगा हुआ कलंक है और इसे धोने का काम हमें खुद ही करना होगा बाबा साहब ने कहा और बाबा साहब उस कलंक को धोने के लिए ही हमें बुद्ध की शरण में लेकर के आए लेकिन उन लोगों को क्या कहेंगे जो बौद्ध तो बन गए कलंक को नहीं धोया धर्म के अनुयायियों को बाबा साहब के अनुयायियों को सुनते रहने से पढ़ लेने से जय भीम बोलने से नमो बुद्धाय कहने से दीक्षा लेने से यह रोग खत्म नहीं होगा यह रोग नहीं यह महा रोग है बौद्ध बनने के बाद अगर हम जाति को नहीं तोड़ पाए तो फिर जीवन में रूपांतरण की जीवन में सुख के आने की जीवन में स्वाभिमान को बनाने की कोई भी बात नहीं बचेगी तो मैं आप सबसे अनुरोध करके साथ ये बात कह रहा हूं आप सबसे मैं उम्मीद कर रहा हूं इस विषय पर सोचना शुरू करेंगे और सोचने के साथ-साथ एक निष्कर्ष पर पहुंच कर के एक निर्णय लेने के लिए तैयार हो जाएंगे जो जो निर्णय के लिए तैयार हो जाए जाति तोड़ने की गोत्र को छोड़ने की और श्रेष्ठ बौद्ध बनने की अच्छे बद्ध बनने की जो घोषणा करें वह हमारे पास अपने नाम का एक मैसेज छोड़ सकते हैं कि मैं जाति को तोड़ने के लिए तैयार हूं मैं जाति से जुड़ी पहचान को नष्ट करने के लिए तैयार हूं ताकि बौद्ध समाज की घोषणा के साथ हम निश्चिंत हो सके एक नए दौर का नया काम शुरू हो चुका है आज मैंने जिन लोगों से बात की भले उनकी संख्या बहुत कम थी लेकिन वह सभी शहर से तैयार थे इस जाति को तोड़ने की नई पहचान को स्थापित करने के इस मुहिम में इस आंदोलन में तो आज मैं आपसे भी य कामना करता हूं आप लोग भी इस आंदोलन के पक्षधर बन कर के इस काम को आगे ले जाने में सहयोग करेंगे ।