गौतम बुद्ध की जीवनी
2/16/20251 min read
गौतम बुद्ध का जन्म 563 ईसा पूर्व कपिलवस्तु के पास लुंबिनी में हुआ जो आज नेपाल का सबसे प्रसिद्ध तीर्थ स्थल है उनके पिता का नाम राजा शुद्धोधन था जो सांप के राजा थे और उनकी माता का नाम रानी माया देवी था उनके परिवार वालों ने उनका नाम सिद्धार्थ रखा दुर्भाग्यवश माया देवी का निधन सिद्धार्थ के जन्म के सात दिनों बाद ही हो गया कि माया देवी की मृत्यु के बाल सिद्धार्थ का पालन-पोषण माया देवी की बहन और राजा शुद्धोधन की दूसरी पत्नी महाप्रजापति गौतमी ने किया कहते हैं कुछ विद्वानों ने यह पूर्व सूचना दी थी कि सिद्धार्थ बड़े होकर एक महान राजा या फिर एक महान सिद्ध पुरुष बनेंगे विद्वानों की बात सुनकर राजा शुद्धोधन चिंतित हो गए हैं ये दुनिया के दुखों से बचाने और संत बनने से रोकने के लिए उन्होंने सिद्धार्थ को महल की चौखट कभी पार ही नहीं करने दी और इस बात का ख्याल रखा कि वह कभी बाहरी दुनिया और उनकी पीड़ाओं के समक्ष न जा सके उन्होंने सिद्धार्थ को वह अरे एक शिक्षा दी जो उन्हें राजा बनने के योग्य बना सके परंतु वह भी महल के चार दीवारों के अंदर जब सिद्धार्थ एक योग्य उम्र के हुए तब राजा ने उनका विवाह राजकुमारी यशोधरा से कर दिया कुछ समय पश्चात यशोधरा ने एक पुत्र को जन्म दिया जिसका नाम उन्होंने राहुल रखा राजा शुद्धोदन ने सिद्धार्थ को हर एक सुख सुविधा उपलब्ध करके दी थी जिससे उन्हें कोई कमी महसूस न हो सके तो हैं परंतु चाहे जितनी भी सुख सुविधाएं उपलब्ध हो कोई कितनी देर तक महल के चार दीवारों में बन रह सकता है इसलिए एक दिन सिद्धार्थ ने यह तय किया कि वह आज महल के बाहर जाएंगे और अपने खुशहाल राज्य का विहार करेंगे और तय किए गए अनुसार वह विहार करने के लिए निकल गए 29 सालों में उन्होंने पहली बार महल के बाहर कदम रखा था यही वह दिन था जिसकी चिंता में राजा हमेशा रहते थे कि बिहार करते हुए उन्हें रास्ते में एक बूढ़े इंसान दिखाई दिया उन्होंने सारथी से पूछा उस इंसान की प्रकृति ऐसी क्यों है सारथी ने कहा सभी लोग अपने जीवन में बूढ़े होते हैं तब सिद्धांत को पहली बार यह पता चला कि इंसान बुड्ढा भी होता है कुछ देर बाद उन्हें एक बीमार व्यक्ति दिखाई दिया उन्होंने फिर से सारथी को उसके बारे में पूछा तब उसने बताया कि आखिर इंसान को जीवन में बीमारियां होती रहती है सिद्धार्थ इस बात से भी अनजान थे कि आगे उन्हें एक शव यात्रा दिखी सिद्धार्थ ने फिर से सारथी को इस बारे में पूछा सारथी ने उन्हें बताया कि जो भी इस दुनिया में आता है उसे एक ना एक दिन इस दुनिया को छोड़ कर जाना पड़ता है कि थोड़ा आगे जाने के बाद उन्हें एक संन्यासी दिखाई दिए उन्होंने फिर से सारथी को संन्यासी के बारे में पूछा तब सारथी ने उनसे कहा कि यह एक संन्यासी है जब कोई इंसान अपने जीवन की सुख सुविधाओं को त्याग देता है तब वह संन्यासी बन जाता है और फिर वही बात हुई जिसका राजा को डरता था ही सिद्धार्थ जीवन के दुखों से परिचित हो चुके थे बिहार के दौरान देखी हुई बातों ने उन्हें सोचने पर मजबूर कर दिया वह यह सोचने लगे कि जब इंसान को इस दुनिया में आकर दुख भी सहना है तो इस वैभव का क्या अर्थ है उन्होंने अपने इस वैभवशाली जीवन को छोड़ जीवन के शाश्वत सत्य का मार्ग ढूंढने का निर्णय लिया और वह अपना सभी सुख-सुविधाओं से भरा जीवन छोड़ जंगल में एक तपस्वी का जीवन जीने के लिए निकल गए कि उन्होंने कई तपस्वियों का मार्गदर्शन लिया तपस्वियों ने जो कहा सिद्धार्थ ने वह सब किया परंतु कुजूर जानना चाहते थे वहीं नहीं मिल पा रहा था कि एक दिन वह आकर एक पीपल के वृक्ष के नीचे बैठे और उन्होंने दिन-रात कड़ी तपस्या की जिसका फल उन्हें वैशाख पूर्णिमा के दिन मिला जब उन्हें उनके प्रश्नों के उत्तर मिल गए इस संसार के ज्ञान का बोध होने के बाद सिद्धार्थ गौतम बुद्ध ने और जिस पीपल के पेड़ के नीचे उन्हें बोध मिला वह वृक्ष कहलाया गया बोधिवृक्ष के नीचे चार सप्ताह तक उन्होंने धर्म के स्वरूप का चिंतन किया और फिर बुद्ध धर्म का प्रचार करने निकल पड़े उन्होंने लोगों को मध्यम मार्ग का उपदेश किया और चार आर्य सत्य अष्टांग मार्ग तथा अहिंसा का प्रचार किया!