प्रज्ञा के मापदंड क्या है?

प्रज्ञा का अर्थ है सम्यक दृष्टि कि व्यक्ति की सम्यक दृष्टि का होना ही प्रज्ञा का होना है और सम्यक दृष्टि का अर्थ है अविद्या का नाश होना और अविद्या का नाश का मतलब है कि व्यक्ति अपनी गलत धारणाओं से अपने आप को मुक्त करता है अज्ञानता का नाश करता है अविद्या से अज्ञानता से बाहर निकलता है जब अपनी अज्ञान को अविद्या को जड़ता से नष्ट करता है वो जो मन की अवस्था है वह जो बुद्धि की अवस्था है उसको हम बोलते हैं बुद्धि का निर्मल होना और बुद्धि की निर्मलता को ही प्रज्ञा कहा है जब बुद्धि निर्मल होती है वह प्रज्ञा है अब प्रज्ञा को कैसे मापा या कैसे जांचें जब भी कोई व्यक्ति प्रज्ञा में है तब निश्चित रूप से वह अपने दुखों से मुक्त होता है प्रज्ञान व्यक्ति अपने जीवन के दुखों से मुक्त रहता है क्योंकि वे अपने दुख के कारणों को जान कर के उनसे बाहर निकल जाते हैं तभी वह अपनी अविद्या का नाश करते हैं तो बुद्धि की निर्मलता प्रज्ञा है इसका जो पैमाना है पैमाना यह है जब हम दूसरों को दुखी देखते हैं दूसरे व्यक्ति को कष्ट में देखते हैं और हमारे मन में भाव पैदा होता है कि मैं इसका कल्याण करू इसको भी दुख मुक्ति के मार्ग पर लेकर के चलू इसके भी जीवन के दुखों का अंत करूं दुखों के अंत करने में मैं भागीदार बनू इसे भी श्रेष्ठ जीवन के मार्ग पर लेकर के चलू यह काम बड़ी जिम्मेदारी का है और यह काम दो ही प्रकार से हो सकता है एक तो सेवा भाव से और दूसरा दान परमिता से हम किसी की सेवा करते बीमार व्यक्ति की सेवा करते हैं यह भी उस व्यक्ति को दुख से बाहर निकालने का एक माध्यम है किसी गरीब व्यक्ति को भूखे व्यक्ति को खाना दे देते हैं हमें लगता है कि यह भी भूख से बाहर निकालने का माध्यम हो गया लेकिन छोटे माध्यम है उस व्यक्ति को दुख मुक्ति के मार्ग पर लेकर चलना उसके दुख के कारण है उसे बाहर निकाल देना एक बड़ी जिम्मेदारी है अगर बौद्ध अनुयायियों को इतना एहसास हो जाए कि उन्हें बड़ा काम करना है उदाहरण के लिए कोई गरीब व्यक्ति है और वह अपने बच्चे को ठीक से पढ़ा नहीं पा रहा और हम उसे उपदेश देते हैं कि बच्चों को अच्छा पढ़ाओ उसके घर का भोजन की व्यवस्था भी बड़ी मुश्किल से हो रही है हमारी सलाह हो सकता है कि उसको समझदार तो बना दे लेकिन बच्चे की पढ़ाई के लिए हो सकता है वह साधन ना छुटा पाए हमारी क्या जिम्मेदारी है हमारी जिम्मेदारी बनती है कि हम अपनी दान पमिता के प्रभाव से उस बच्चे के लिए शिक्षा की व्यवस्था में सहायता करें हम उपदेश दे रहे हैं और सहायता नहीं कर रहे हैं इसका अर्थ यह हुआ कि हम खुद प्रज्ञा में नहीं है प्रज्ञा का जो मापदंड है यह दान से ही मापा जाता है प्रज्ञान व्यक्ति दानवा होता ही है अगर दानवा नहीं है दान शलता नहीं है दान देना नहीं चाहता है दान देता नहीं है तो विद्वान तो हो सकता है प्रज्ञा वान नहीं हो सकता तो प्रज्ञा की कसौटी सिद्धांत पमिता शुरू होती है और अभी जो हम देख रहे हैं जो बौद्ध बने हैं बौद्ध तो बन गए लेकिन एक भी पमिता को अभी समझने की शुरुआत नहीं हो पाई कुछ लोग शील संपन्नता में भी आ रहे हैं शीलों का पालन भी कर रहे हैं कुछ के स्वभाव भी बदले हैं लेकिन पहली जो पमिता है दान पारम दान पमिता और प्रज्ञा की पमिता प्रज्ञा बिना दान के पूर्ण नहीं है और बिना प्रज्ञा के दान नहीं है दान के बिना प्रज्ञा नहीं है तो प्रत्येक बध व्यक्ति को अपने व्यक्तित्व में इस बात को डाल लेना चाहिए कि जो हम करुणा और मैत्री की जो बात करते हैं दया करुणा मैत्री की बात करते हैं दूसरे के कल्याण की बात करते हैं तो बिना दान के यह कभी भी पूर्ण नहीं होगा किसी व्यक्ति को गरीबी से बाहर निकालना है तो धन का दान ही देना होगा किसी व्यक्ति को भूख से बाहर निकालना है तो भोजन देना होगा किसी व्यक्ति के को ठंड से ने से बचाना है तो वस्त्र का दान देना होगा बीमार व्यक्ति को हो सकता है रक्त का दान देना पड़े बिना कल्याण के कैसे किसी को दुख मुक्ति के मार्ग पर लेकर चलेंगे